क्या किताबों में मिला, और क्या रिसालों में
सुख मिला भी तो मिला है महज़ ख़यालों में
मेरी परछाईं तक ने मुझसे साफ साफ कहा-
“मैं तेरा साथ तो दूंगी, मगर उजालों में “
तुझे ही शौक था, सबको जबाब देने का
उलझ के रह गई ना ज़िन्दगी सवालों में
शहर मे दर्द अकेले का, गाँव मे सबका
यही है फ़र्क़, शहर वालों, गाँव वालों में
पवन दीक्षित
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3 comments:
मेरी परछाईं तक ने मुझसे साफ साफ कहा-
“मैं तेरा साथ तो दूंगी, मगर उजालों में “
काबिले तारीफ़ है ये शे’र..
जीओ!!
you can post me your ghazal with the name of beher and its vazan..and visit
aajkeeghazal.blogspot.com
waah..!!
:::....
मेरी परछाईं तक ने मुझसे साफ साफ कहा-
“मैं तेरा साथ तो दूंगी, मगर उजालों में “
Khubsurat :)
Pranaam !!
Love..Masto...!!
शहर और गांव का अन्तर बिल्कुल सही बताया
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