Tuesday, February 26, 2008

रहने दे

मुझसा लगना रहने दे
कुछ तो अपना रहने दे

अपनी हसरत पूरी कर
मेरा सपना रहने दे
उकता गया ख़ुशी से मन
आज अनमना रहने दे
सच कहने की हिम्मत कर
यूँ दिल रखना रहने दे
सिर्फ़ भरम ही टूटेंगे
छोड़, परखना रहने दे
सच्चा होना काफ़ी है
गंगा जमना रहने दे
कहता है तू ख़ैर से है
ख़ुद को ठगना रहने दे
पवन दीक्षित

Monday, February 25, 2008

अपने भी, बेगाने भी

अपने भी, बेगाने भी रिश्ते मगर निभाने भी

सिर्फ परेशाँ जाते हैं
मन्दिर भी, मैख़ाने भी

क्या ख़ूबी से बोले है
सच्चे लगैं बहाने भी

उनकी क्या मजबूरी थी
बात भी की, पहचाने भी
अबके ईदी नहीं मिली ”हामिद” को दो आने भी
पवन दीक्षित

Thursday, February 21, 2008

kaash....

काश, मेरी जगह जो तू होता
तो मेरे ग़म से रू ब रू होता

मैं तेरी आरज़ू न करता तो
जाने कितनो की आरज़ू होता

पवन दीक्षित

Saturday, February 9, 2008

सब कुछ सहना है अब चुप रहना है खामोशी मेरी मेरा "कहना" है गम के दरिया मे हंस कर बहना है इक झूठा चेहरा मैंने पहना है ओ मगरूर महल इक दिन ढहना है पवन "वजीरा" तू तू ही "लहना" है प. दी.