Saturday, February 9, 2008

सब कुछ सहना है अब चुप रहना है खामोशी मेरी मेरा "कहना" है गम के दरिया मे हंस कर बहना है इक झूठा चेहरा मैंने पहना है ओ मगरूर महल इक दिन ढहना है पवन "वजीरा" तू तू ही "लहना" है प. दी.

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