दिन ब दिन ख़ुशहाल ये जो मेरा घर होने लगा
हो न हो, माँ की दुआओं का असर होने लगा
तब कहाँ था तू बता, जब दूर थी मंज़िल मेरी
आज मंज़िल पास है तो हमसफ़र होने लगा
यार हम दोनों को ही ये दुश्मनी महंगी पड़ी
रोटियों का ख़र्च तक बन्दूक पर होने लगा
तंग-दस्ती में सभी, मिलने से कतराने लगे
मांग लूंगा कुछ मदद, सबको ये डर होने लगा
Wednesday, April 23, 2008
उनके कहे से हो गया जो बदगुमान तू
पूरी न कर सकेगा, परिन्दे उड़ान तू
रोयेंगे तेरे साथ में, हँस देंगे बाद में
किनको सुनाने बैठ गया दास्तान तू
रहता है जिस मकान में तेरा नहीं है वो
बदलेगा जाने और भी कितने मकान तू
मुझसे ख़फ़ा हैं, तुझपे मेहरबान हैं,तो फिर
बोलेगा भला क्यों न अब, उनकी ज़बान तू
हँस के करे है बात, तो कुछ बात है ज़रूर
होवे, बग़ैर बात, भला मेहरबान तू
पवन दिक्षित
पूरी न कर सकेगा, परिन्दे उड़ान तू
रोयेंगे तेरे साथ में, हँस देंगे बाद में
किनको सुनाने बैठ गया दास्तान तू
रहता है जिस मकान में तेरा नहीं है वो
बदलेगा जाने और भी कितने मकान तू
मुझसे ख़फ़ा हैं, तुझपे मेहरबान हैं,तो फिर
बोलेगा भला क्यों न अब, उनकी ज़बान तू
हँस के करे है बात, तो कुछ बात है ज़रूर
होवे, बग़ैर बात, भला मेहरबान तू
पवन दिक्षित
Sunday, April 13, 2008
Wednesday, April 9, 2008
Saturday, April 5, 2008
मुद्दतों बाद
मुद्दतों बाद इक नज़र देखा
चाहते तो न थे मगर देखा
खुद ब खुद पास आ गई मन्ज़िल
जब मेरा जज़्बाए-सफ़र देखा
खुद की कमियाँ नज़र नहीं आईं
आईना यूँ तो उम्र भर देखा
चाहते तो न थे मगर देखा
खुद ब खुद पास आ गई मन्ज़िल
जब मेरा जज़्बाए-सफ़र देखा
खुद की कमियाँ नज़र नहीं आईं
आईना यूँ तो उम्र भर देखा
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