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adab-ghar
Sunday, April 13, 2008
क्यों तसल्ली दे, क्यों बहाने दे
अब मेरी आस टूट जाने दे
इतनी लम्बी जिरह से बेहतर है
तू उसे फ़ैसला सुनाने दे
लौट आयेगा वो, उसे अपने
दोस्तों को तो आज़माने दे
1 comment:
Anonymous said...
wah kya baat hai
April 13, 2008 at 9:55 PM
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होने लगा
साफ़ कह दे गिला कोई गर हैफ़ैसला, फ़ासले से बेहतर है
कौन अपना है इस ज़माने मेंबेहतरी है, न आज़माने में
उनके कहे से हो गया जो बदगुमान तूपूरी न कर सकेगा, प...
आदमी बे-ज़बान लगता हैदर्द की दास्तान लगता हैअबके चौ...
क्यों तसल्ली दे, क्यों बहाने देअब मेरी आस टूट जाने...
कोई ज़िद भी नहीं करते, कहा भी मान लेते हैंमेरी मजब...
कोई ज़िद भी नहीं करते, कहा भी मान लेते हैंमेरी मजब...
मुद्दतों बाद
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koi batlaaye ki ham batlaayen kyaa........
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wah kya baat hai
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