Wednesday, April 9, 2008

कोई ज़िद भी नहीं करते, कहा भी मान लेते हैं
मेरी मजबूरियाँ शायद, ये बच्चे जान लेते हैं

सहारा दे के, जो गाते फिरें सारे ज़माने में
भला उन दोस्तों का हम कहाँ एहसान लेते हैं
पवन दीक्षित

1 comment:

हरिमोहन सिंह said...

शब्‍द नहीं है जी कहने को । बस अन्‍दर कुछ छू कर जाते है