Monday, January 28, 2008

गर नहीं आते

तेरी बातों मे गर नहीं आते हम कभी लौट कर नहीं आते
है बुरा वक़्त तो मेरे अपने
दूर तक भी नज़र नहीं आते
मेरे कस्बे मे रोज़गार नहीं
वरना तेरे शहर नहीं आते
जिनका बचपन क़फ़स मे बीता हो
उन परिन्दों के पर नहीं आते
वफ़ा की शक्ल मे दग़ाबाज़ी
मुझको तेरे हुनर नहीं आते
मैं भी सुकरात हो गया होता
लोग ले कर ज़हर नहीं आते
हाल घर का न छुप सका शायद
अब भिखारी भी घर नहीं आते
पवन दीक्षित

Saturday, January 26, 2008

ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै

ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै, ये कैसे रिश्ते निभा रहा हूं
जता रहा हूं किसी से चाहत, किसी से नफ़रत छुपा रहा हूं
कभी कहा था,अकड़ के मुझसे, न जी सकेगा बिछड़ के मुझसे
वही गया था झगड़ के मुझसे, उसी को जी कर दिखा रहा हूं.........
मुझे हक़ीकत पता नहीं थी, पर इसमे मेरी ख़ता नहीं थी
तेरी ख़ता, क्या बता नहीं थी,तुझे लगा मैं सता रहा हूं.......
मैं ख़ुद को बिल्कुल बदल चुका हूं,तेरी हदों से निकल चुका हूं
के वक्त रहते सम्हल चुका हूं, यक़्क़ेन ख़ुद को दिला रहा हूं
ये कैसे रिश्तों में फंस गया मैं................
पवन दीक्षित

प्यार .........

परवाह नहीं करता जो, साहिल हो या मझधार
जिसको डरा ना पाये कोई तीर न तलवार
दुनियाँ की सबसे पाक़ चीज़ क्या है मेरे यार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार .........
हमारे दिल तो सभी के हैं सीपियों की तरह
किसी किसी मे ये मिलता है मोतियों की तरह
कहीं राधा, कहीं मीरा, कहीं घनश्याम है ये
कहीं विरह मे तड़पता है गोपियों की तरह
कहने को ढाई आखर, पर ज़िन्दगी का सार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार ..............
किसी की आँख मे चमके है आँसुओं की तरह
किसी के दिल मे ये दमके है जुगनुओं की तरह
इसकी दीवानगी मे ख़ार फूल लगते हैं
प्यार दिल मे जो महकता है ख़ुश्बुओं की तरह
गुलशन से फूल सब चुने, दीवाने चुने ख़ार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार.......
ये है रहीम का धागा, कबीर की चादर
राम तुलसी के लिये और सूर का गिरधर
पीर मीरा की है, रैदास की कठौती है
ये है सुकरात का प्याला ज़रा देखो पी कर
जो पी ले इसे उसका उतरे नहीं ख़ुमार प्यार प्यार वो है प्यार प्यार...........
बाप की डाँट मे है और माँ के आँचल में
किसी के बेर में है और किसी के चावल में
किसी की राखियों में है, किसी की मेंहदी में
किसी के आंसुओं के साथ बहे काजल में
एक रंग प्यार का है, पर रूप हैं हज़ार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार..........
पवन दीक्षित

डर गया हूँ मैं

बीते दिनों को याद करके , डर गया हूँ मैं
अपनो के लिये तो कभी का मर गया हूँ मैं
वो दिन भी याद हैं, कोई झूठे को पूछ ले
खाने के वक़्त, दोस्तों के घर गया हूँ मैं
पवन दीक्षित

Friday, January 25, 2008

तौबा

यार हुस्नो - शबाब से तौबा
यानी उस ला-जबाब से तौबा
अब तो पीने लगी शराब तुम्हे
अब तो कर लो शराब से तौबा
हमने इतने गुलाब भिजवाये
उसने कर ली गुलाब से तौबा

पारसाई न काम आई ना
और कर लो शराब से तौबा
थक के बोला यूं दावरे-महशर
यार तेरे हिसाब से तौबा
पवन दीक्षित

Thursday, January 24, 2008

ख़तरनाक है......

ये मंज़र सियासी, ख़तनाक है
के सारी फ़िज़ा ही, ख़तरनाक है
मेरे ऐब को भी बताये हुनर
मेरे यार तू भी ख़तरनाक है

बुरे लोग दुनिया का ख़तरा नहीं
शरीफ़ों की चुप्पी ख़तरनाक है
पवन दीक्षित

धन्यवादम....

यक़ीन दो जनों ने इस बशर पे रक्खा है
मैने ईमान, बस इन दो के दर पे रक्खा है
नेमते - शायरी मंगल “नसीम” ने बक्शी
अशोक “चक्रधर” ने हाथ सर पे रक्खा है
पवन दीक्षित

अदब-घर से आप तक ......

इस दौर में भी, जज़्बात लिये फिरता हूँ
पागल हूँ मैं, दिल साथ लिये फिरता हूँ
आँखों में मेरी, आँसू हैं मीरा के
और होठों पर सुकरात लिये फिरता हूँ
पवन दीक्षित