Saturday, January 26, 2008

ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै

ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै, ये कैसे रिश्ते निभा रहा हूं
जता रहा हूं किसी से चाहत, किसी से नफ़रत छुपा रहा हूं
कभी कहा था,अकड़ के मुझसे, न जी सकेगा बिछड़ के मुझसे
वही गया था झगड़ के मुझसे, उसी को जी कर दिखा रहा हूं.........
मुझे हक़ीकत पता नहीं थी, पर इसमे मेरी ख़ता नहीं थी
तेरी ख़ता, क्या बता नहीं थी,तुझे लगा मैं सता रहा हूं.......
मैं ख़ुद को बिल्कुल बदल चुका हूं,तेरी हदों से निकल चुका हूं
के वक्त रहते सम्हल चुका हूं, यक़्क़ेन ख़ुद को दिला रहा हूं
ये कैसे रिश्तों में फंस गया मैं................
पवन दीक्षित

1 comment:

..मस्तो... said...

Khubsurat ..Khubsurat...Khubsurat...,
bahut khubsurat hai ....

Mujhe ye bahut pasand hai...
कभी कहा था,अकड़ के मुझसे, न जी सकेगा बिछड़ के मुझसे
वही गया था झगड़ के मुझसे, उसी को जी कर दिखा रहा हूं.........
Khubsurat...Laajwaab..Behtrin..WoW...yahi niklta hai jab bhi ise sunta huN...

Pranaam..!!
Love..Masto...