मुफलिसी में, घर में सबकी ख़ामियाँ गिनने लगा
हद तो ये, मैं बालकों की रोटियाँ गिनने लगा
Saturday, December 27, 2008
Friday, September 5, 2008
ऐलान
ऐलान उसका देखिये, के वो मज़े में है
या तो कोई फ़क़ीर है, या फिर नशे में है
दौलत बटोर ली मगर अपने तो खो दिये
और वो समझ रहा है, बड़े फ़ायदे में है
या तो कोई फ़क़ीर है, या फिर नशे में है
दौलत बटोर ली मगर अपने तो खो दिये
और वो समझ रहा है, बड़े फ़ायदे में है
Saturday, August 30, 2008
माई....
लाल तेरा कमाल है माई
सुनके कितनी निहाल है माई
जिनके सर का बवाल है माई
उनपे कैसी निहाल है माई
चैन से सो रहे हैं क्यूं बच्चे
रोटियों का कमाल है माई
भूख़ हो तो भजन नहीं होता
इक पुरानी मिसाल है माई
तेरी ख़िदमत करेंगे ये बच्चे
सिर्फ़ तेरा ख़याल है माई
नाम बेटों के कर दिया सबकुछ
घर से तेरा निकाल है माई
सुनके कितनी निहाल है माई
जिनके सर का बवाल है माई
उनपे कैसी निहाल है माई
चैन से सो रहे हैं क्यूं बच्चे
रोटियों का कमाल है माई
भूख़ हो तो भजन नहीं होता
इक पुरानी मिसाल है माई
तेरी ख़िदमत करेंगे ये बच्चे
सिर्फ़ तेरा ख़याल है माई
नाम बेटों के कर दिया सबकुछ
घर से तेरा निकाल है माई
Saturday, August 23, 2008
Tuesday, August 19, 2008
देख ले
मिट गये हम उफ़ न की है देख ले
किस कदर दीवानगी है देख ले
ज़िन्दगी भर साथ देने की कसम
यार पूरी ज़िन्दगी है देख ले
ये हवेली कल शहर की शान थी
आज ये सूनी पड़ी है देख ले
इससे पहले मैक़दा हो जाये बन्द
ख़त्म है या कुछ बची है देख ले
किस कदर दीवानगी है देख ले
ज़िन्दगी भर साथ देने की कसम
यार पूरी ज़िन्दगी है देख ले
ये हवेली कल शहर की शान थी
आज ये सूनी पड़ी है देख ले
इससे पहले मैक़दा हो जाये बन्द
ख़त्म है या कुछ बची है देख ले
Thursday, August 14, 2008
Wednesday, August 13, 2008
अपनापन
सपने सच करने की धुन में, अपने सब खो जायेंगे
अपनों से, अपनापन रखना, सपने सच हो जायेंगे
हासिल तो क्या होना है बस, भरम तेरा रह जयेगा
तेरे आगे, अपने दुखड़े, चल, हम भी रो जायेंगे
तनख़्वाह दूर, खिलौनों की ज़िद, और बहाने बचे नहीं
आज, देर से घर जाना है, बच्चे जब सो जायेंगे
अपनों से, अपनापन रखना, सपने सच हो जायेंगे
हासिल तो क्या होना है बस, भरम तेरा रह जयेगा
तेरे आगे, अपने दुखड़े, चल, हम भी रो जायेंगे
तनख़्वाह दूर, खिलौनों की ज़िद, और बहाने बचे नहीं
आज, देर से घर जाना है, बच्चे जब सो जायेंगे
Sunday, August 10, 2008
Thursday, August 7, 2008
Tuesday, August 5, 2008
यारो
ये जो सर पर उधार है यारो
जग-दिखावे की मार है यारो
तुम समझते हो उसको आवारा
वो तो बे-रोज़ग़ार है यारो......
जग-दिखावे की मार है यारो
तुम समझते हो उसको आवारा
वो तो बे-रोज़ग़ार है यारो......
Wednesday, July 23, 2008
Friday, May 23, 2008
शातिर हो गया
या मेरा दुश्मन ही शातिर हो गया
या कोई अपना ही मुख़बिर हो ग्या
तू जुदा होना था आख़िर हो गया
पर तेरा किरदार ज़ाहिर हो गया
मैं जो इस महफ़िल मे हाज़िर हो गया
क्या बताऊं किसकी ख़ातिर हो गया
जो मकाँ मुझसे नहीं बन पाया “घर”
माँ का आना था कि मन्दिर हो गया
हर कोई कहता है मुझको देख कर-
“था भला इंसान, शाइर हो गया”
या कोई अपना ही मुख़बिर हो ग्या
तू जुदा होना था आख़िर हो गया
पर तेरा किरदार ज़ाहिर हो गया
मैं जो इस महफ़िल मे हाज़िर हो गया
क्या बताऊं किसकी ख़ातिर हो गया
जो मकाँ मुझसे नहीं बन पाया “घर”
माँ का आना था कि मन्दिर हो गया
हर कोई कहता है मुझको देख कर-
“था भला इंसान, शाइर हो गया”
Wednesday, May 21, 2008
कब तक
उनसे अपनापन कब तक
आख़िर ये उलझन कब तक
इक दिन तो सच कहना था
रखता उनका मन कब तक
देखें इन दीवारों से
बचता है आँगन कब तक
अपना चेहरा पहचानो
बदलोगे दरपन कब तक
आख़िर ये उलझन कब तक
इक दिन तो सच कहना था
रखता उनका मन कब तक
देखें इन दीवारों से
बचता है आँगन कब तक
अपना चेहरा पहचानो
बदलोगे दरपन कब तक
Tuesday, May 20, 2008
दूध
लाख दुनिया के रंजो-ग़म लेंगे
तेरे अहसान अब, न हम लेंगे
अबके अम्मा की आँख बननी हैं
आज से दूध थोड़ा कम लेंगे
तेरे अहसान अब, न हम लेंगे
अबके अम्मा की आँख बननी हैं
आज से दूध थोड़ा कम लेंगे
Monday, May 19, 2008
समझते हैं
ख़ुद को वो पारसा समझते हैं
और हमको बुरा समझते हैं
मानते हैं किसी ख़ुदा को वो
हम किसी को ख़ुदा समझते हैं
सामना कैसे करूं मैं उनका
वो मुझे बा-वफ़ा समझते हैं
आपकी बात का यक़ीन करूं
क्या मुझे बावला समझते हैं
और हमको बुरा समझते हैं
मानते हैं किसी ख़ुदा को वो
हम किसी को ख़ुदा समझते हैं
सामना कैसे करूं मैं उनका
वो मुझे बा-वफ़ा समझते हैं
आपकी बात का यक़ीन करूं
क्या मुझे बावला समझते हैं
Sunday, May 18, 2008
रिटायर्ड – हर्ट
जब तक मेरी ज़रूरत थी
घर में कितनी इज़्ज़त थी
खपता रहा ज़िन्दगी भर
जितनी मुझमे ताक़त थी
बेटों के घर हफ़्ता भर
बस रहने की मोहलत थी
बहुओं का तो नाम था बस
सब बेटों की हरकत थी
सोच ले ऐ बच्चों की माँ
यही हमारी क़िस्मत थी
घर में कितनी इज़्ज़त थी
खपता रहा ज़िन्दगी भर
जितनी मुझमे ताक़त थी
बेटों के घर हफ़्ता भर
बस रहने की मोहलत थी
बहुओं का तो नाम था बस
सब बेटों की हरकत थी
सोच ले ऐ बच्चों की माँ
यही हमारी क़िस्मत थी
Friday, May 16, 2008
याद आये
ज़िद पर बाबूजी के चांटे याद आये
फिर अम्मा के आटे-बाटे याद आये
बाबूजी की बेंत देखते ही मुझको
यारों के संग सैर-सपाटे याद आये
इतने दिन मेरे घर, इतने भाई के
दिन कैसे माँ-बाप के बाँटे याद आये
फिर अम्मा के आटे-बाटे याद आये
बाबूजी की बेंत देखते ही मुझको
यारों के संग सैर-सपाटे याद आये
इतने दिन मेरे घर, इतने भाई के
दिन कैसे माँ-बाप के बाँटे याद आये
इक राज़
इक राज़ बताया हमे, आँखों के नीर ने
पीरों को पीर कर दिया, दुनिया की पीर ने
चिडियों को चुगते देखी रहा था, कि अचानक
हँस कर कटोरा फेंक दिया इक फ़क़ीर ने
मजबूरियों की आड़ मे, गिरता चला गया
रोका तो था मुझे बहुत, मेरे ज़मीर ने
उस बादशाह का कोई मोहरा नहीं पिटा
दी मात उसको उसके ही अपने वज़ीर ने
दामन के दाग़ देख के हम सोचते रहे
कैसे रखी सम्हाल के “चादर” “कबीर” ने
पीरों को पीर कर दिया, दुनिया की पीर ने
चिडियों को चुगते देखी रहा था, कि अचानक
हँस कर कटोरा फेंक दिया इक फ़क़ीर ने
मजबूरियों की आड़ मे, गिरता चला गया
रोका तो था मुझे बहुत, मेरे ज़मीर ने
उस बादशाह का कोई मोहरा नहीं पिटा
दी मात उसको उसके ही अपने वज़ीर ने
दामन के दाग़ देख के हम सोचते रहे
कैसे रखी सम्हाल के “चादर” “कबीर” ने
Thursday, May 15, 2008
Wednesday, May 14, 2008
Tuesday, May 13, 2008
किस ख़ूबी से अपना काम निकाला है
मैं तो समझा था वो भोला-भाला है
कितना हमको उन लोगों ने भटकाया
जो कहते थे रस्ता देखा- भाला है
लाख अंधेर मचा रक्खा हो झूठों ने
लेकिन सच का अपना एक उजाला है
आज उन्ही को बोझ लगे है “वो बूढ़ा”
”जिसने” उनको बोझा ढोकर पाला है
भूखे बच्चे ने दम तोड़ा है जब से
उस पगली के हाथ में एक निवाला है
मैं तो समझा था वो भोला-भाला है
कितना हमको उन लोगों ने भटकाया
जो कहते थे रस्ता देखा- भाला है
लाख अंधेर मचा रक्खा हो झूठों ने
लेकिन सच का अपना एक उजाला है
आज उन्ही को बोझ लगे है “वो बूढ़ा”
”जिसने” उनको बोझा ढोकर पाला है
भूखे बच्चे ने दम तोड़ा है जब से
उस पगली के हाथ में एक निवाला है
Monday, May 12, 2008
तेरे ग़म से
तेरे ग़म से उबर चुका हूँ मैं
पहले वाला तो मर चुका हूँ मैं
मेरे दिल में वो शक्स उतरा है
जिसके दिल से उतर चुका हूँ मैं
जो गली कुल शहर की हसरत है
उससे बरसों ग़ुज़र चुका हूँ मैं
आसमाँ अब मुझे चिड़ाता है
जब ज़मीं पर उतर चुका हूँ मैं
पहले वाला तो मर चुका हूँ मैं
मेरे दिल में वो शक्स उतरा है
जिसके दिल से उतर चुका हूँ मैं
जो गली कुल शहर की हसरत है
उससे बरसों ग़ुज़र चुका हूँ मैं
आसमाँ अब मुझे चिड़ाता है
जब ज़मीं पर उतर चुका हूँ मैं
Saturday, May 10, 2008
कतराने लगा
आजकल तो दोस्तों से भी वो कतराने लगा
उसपे आख़िर कामयाबी का असर आने लगा
हैं सभी सहमे, कि जिसके दम से चलता है ये घर
कुछ दिनों से, वक़्त से पहले ही घर आने लगा
अब तो दुश्मन भी सुलह की कोशिशें करने लगे
ये कहा मैने, तो मेरा यार घबराने लगा
उसपे आख़िर कामयाबी का असर आने लगा
हैं सभी सहमे, कि जिसके दम से चलता है ये घर
कुछ दिनों से, वक़्त से पहले ही घर आने लगा
अब तो दुश्मन भी सुलह की कोशिशें करने लगे
ये कहा मैने, तो मेरा यार घबराने लगा
बच कर बैठा
वो जो मुझसे बच कर बैठा
अफ़वाहों को सच कर बैठा
मैं तो सच की ज़िद में अपना
सपना किरच किरच कर बैठा
हैराँ था अपने करतब पर
वो जब दुनिया रच कर बैठा
अफ़वाहों को सच कर बैठा
मैं तो सच की ज़िद में अपना
सपना किरच किरच कर बैठा
हैराँ था अपने करतब पर
वो जब दुनिया रच कर बैठा
रोता रहा
कोई उसका दुख न समझा, वो सदा रोता रहा
सब मज़ा लेते रहे, और मसख़रा रोता रहा
इक दुल्हन डोली में बैठी, टूट कर रोती रही
बन्द कमरे में इधर, इक सरफिरा रोता रहा
लाख वो हँसता रहा होगा वफ़ाओं पर मेरी
पर सुना, हो कर जुदा, वो बेवफ़ा रोता रहा
ये सुना था, जो तेरा है, मुस्कुराता है सदा
मैं तो सारी ज़िन्दगी, मेरे ख़ुदा रोता रहा
ख़ुश रहा वो, सब्र से काटी है जिसने ज़िन्दगी
फेर में निन्यानवे के जो पड़ा, रोता रहा
सब मज़ा लेते रहे, और मसख़रा रोता रहा
इक दुल्हन डोली में बैठी, टूट कर रोती रही
बन्द कमरे में इधर, इक सरफिरा रोता रहा
लाख वो हँसता रहा होगा वफ़ाओं पर मेरी
पर सुना, हो कर जुदा, वो बेवफ़ा रोता रहा
ये सुना था, जो तेरा है, मुस्कुराता है सदा
मैं तो सारी ज़िन्दगी, मेरे ख़ुदा रोता रहा
ख़ुश रहा वो, सब्र से काटी है जिसने ज़िन्दगी
फेर में निन्यानवे के जो पड़ा, रोता रहा
Friday, May 9, 2008
सल्फ़ास
मुश्किल में साथ दे मुझे ये आस तो नहीं
ऐसा जिगर ऐ यार तेरे पास तो नहीं
माँ रोज़ जेब देखे है बेरोज़गार की
बेटे की जेब में कहीं सल्फ़ास तो नहीं
उड़ने से मुझे रोकता सैयाद क्या भला
मैं ही तो क़ैद था मेरा अहसास तो नहीं
ऐसा जिगर ऐ यार तेरे पास तो नहीं
माँ रोज़ जेब देखे है बेरोज़गार की
बेटे की जेब में कहीं सल्फ़ास तो नहीं
उड़ने से मुझे रोकता सैयाद क्या भला
मैं ही तो क़ैद था मेरा अहसास तो नहीं
bhool sudhaar....
gazak ka matala galat type ho gaya thaa maafee chaahataa hoon....
यूँ तसव्वुर में भी वो आ जाये तो सजदा करूं
रू ब रू पा जाऊं तो उससे बहुत झगड़ा करूं
यूँ तसव्वुर में भी वो आ जाये तो सजदा करूं
रू ब रू पा जाऊं तो उससे बहुत झगड़ा करूं
Thursday, May 8, 2008
ईमान खो गया
करके जुगाड़ मेरा ये रुतबा तो हो गया
लेकिन इसी जुगाड़ में ईमान खो गया
पहले हरेक बदी से मुझे रोकता था ये
अब तो मेरा ज़मीर ही, लगता है सो गया
आया था इस मकान में कुछ दिन के वास्ते
करते रहो मलाल, वो मेहमान तो गया
याँ जन्म की ख़ुशी है तो वाँ मौत की ग़मी
आना था जिसको आ गया, जाना था सो गया
लेकिन इसी जुगाड़ में ईमान खो गया
पहले हरेक बदी से मुझे रोकता था ये
अब तो मेरा ज़मीर ही, लगता है सो गया
आया था इस मकान में कुछ दिन के वास्ते
करते रहो मलाल, वो मेहमान तो गया
याँ जन्म की ख़ुशी है तो वाँ मौत की ग़मी
आना था जिसको आ गया, जाना था सो गया
देख ले
फ़ुर्सत नहीं कि तू मुझे इक बार देख ले
ये दिन भी आ गये हैं मेरे यार, देख ले
सच्चों के सामने तो झुकें बादशाह भी
जा कर किसी फ़क़ीर का दरबार देख ले
ये दिन भी आ गये हैं मेरे यार, देख ले
सच्चों के सामने तो झुकें बादशाह भी
जा कर किसी फ़क़ीर का दरबार देख ले
Monday, May 5, 2008
सजदा करूं
यूँ तसव्वुर में वो आ जाये तो सजदा करूं
रू ब रू पा जाऊं तो उससे बहुत झगड़ा करूं
मेरे घर में दर्द ने डाला है डेरा दोस्तों
फ़िक्र में हूं कैसे इस मेहमान को चलता करूं
रौनकें घर की थी जो, अब बोझ घर पर हो गईं
तंग-हाली में सयानी बेटियों क क्या करूं
वो समझता है कि उसके बिन मैं जी सकता नहीं
मैं बयाँ कर के हक़ीक़त क्यों उसे छोटा करूं
पवन दीक्षित
रू ब रू पा जाऊं तो उससे बहुत झगड़ा करूं
मेरे घर में दर्द ने डाला है डेरा दोस्तों
फ़िक्र में हूं कैसे इस मेहमान को चलता करूं
रौनकें घर की थी जो, अब बोझ घर पर हो गईं
तंग-हाली में सयानी बेटियों क क्या करूं
वो समझता है कि उसके बिन मैं जी सकता नहीं
मैं बयाँ कर के हक़ीक़त क्यों उसे छोटा करूं
पवन दीक्षित
हमारे
शरमा के हाथ सौंपा, जब हाथ में हमारे
जैसे नसीब पलटे, इक रात में हमारे
उनकी हवा है अब तो, उनके कहे में मौसम
बरसे न घर में बादल, बरसात में हमारे
ऐ हम पे हँसने वालों, तुम यूं न हँस सकोगे
दो दिन ज़रा जियो तो, हालात में हमारे
दिल का हरेक जज़्बा, आँसू की शक्ल में था
उनको लगा दिखावा, जज़्बात में हमारे
तक़दीर से ठनी थी, मंज़िल से दुश्मनी थी
ऐसे में कौन चलता, फिर साथ में हमारे
पवन दीक्षित
जैसे नसीब पलटे, इक रात में हमारे
उनकी हवा है अब तो, उनके कहे में मौसम
बरसे न घर में बादल, बरसात में हमारे
ऐ हम पे हँसने वालों, तुम यूं न हँस सकोगे
दो दिन ज़रा जियो तो, हालात में हमारे
दिल का हरेक जज़्बा, आँसू की शक्ल में था
उनको लगा दिखावा, जज़्बात में हमारे
तक़दीर से ठनी थी, मंज़िल से दुश्मनी थी
ऐसे में कौन चलता, फिर साथ में हमारे
पवन दीक्षित
मान लिया
क़ुसूरवार हमी हैं ज़रूर, मान लिया
हुज़ूर मान लिया जी, हुज़ूर मान लिया
मैं साफ़गोई का क़ायल था, साफ़ कहता था
मेरे मिज़ाज को उसने ग़ुरूर मान लिया
मेरे क़रीब से गुज़री है मुफ़लिसी जब से
मुझे क़रीब के लोगों ने दूर मान लिया
मेरा बचाव तो मुंसिफ भी चाहता था मगर
मेरे गवाह ने मेरा क़ुसूर मान लिया
मुझे तलाश थी दुनिया में, अपनी दुनिया की
मेरी तलाश को सबने फितूर मान लिया
पवन दीक्षित
हुज़ूर मान लिया जी, हुज़ूर मान लिया
मैं साफ़गोई का क़ायल था, साफ़ कहता था
मेरे मिज़ाज को उसने ग़ुरूर मान लिया
मेरे क़रीब से गुज़री है मुफ़लिसी जब से
मुझे क़रीब के लोगों ने दूर मान लिया
मेरा बचाव तो मुंसिफ भी चाहता था मगर
मेरे गवाह ने मेरा क़ुसूर मान लिया
मुझे तलाश थी दुनिया में, अपनी दुनिया की
मेरी तलाश को सबने फितूर मान लिया
पवन दीक्षित
Wednesday, April 23, 2008
होने लगा
दिन ब दिन ख़ुशहाल ये जो मेरा घर होने लगा
हो न हो, माँ की दुआओं का असर होने लगा
तब कहाँ था तू बता, जब दूर थी मंज़िल मेरी
आज मंज़िल पास है तो हमसफ़र होने लगा
यार हम दोनों को ही ये दुश्मनी महंगी पड़ी
रोटियों का ख़र्च तक बन्दूक पर होने लगा
तंग-दस्ती में सभी, मिलने से कतराने लगे
मांग लूंगा कुछ मदद, सबको ये डर होने लगा
हो न हो, माँ की दुआओं का असर होने लगा
तब कहाँ था तू बता, जब दूर थी मंज़िल मेरी
आज मंज़िल पास है तो हमसफ़र होने लगा
यार हम दोनों को ही ये दुश्मनी महंगी पड़ी
रोटियों का ख़र्च तक बन्दूक पर होने लगा
तंग-दस्ती में सभी, मिलने से कतराने लगे
मांग लूंगा कुछ मदद, सबको ये डर होने लगा
उनके कहे से हो गया जो बदगुमान तू
पूरी न कर सकेगा, परिन्दे उड़ान तू
रोयेंगे तेरे साथ में, हँस देंगे बाद में
किनको सुनाने बैठ गया दास्तान तू
रहता है जिस मकान में तेरा नहीं है वो
बदलेगा जाने और भी कितने मकान तू
मुझसे ख़फ़ा हैं, तुझपे मेहरबान हैं,तो फिर
बोलेगा भला क्यों न अब, उनकी ज़बान तू
हँस के करे है बात, तो कुछ बात है ज़रूर
होवे, बग़ैर बात, भला मेहरबान तू
पवन दिक्षित
पूरी न कर सकेगा, परिन्दे उड़ान तू
रोयेंगे तेरे साथ में, हँस देंगे बाद में
किनको सुनाने बैठ गया दास्तान तू
रहता है जिस मकान में तेरा नहीं है वो
बदलेगा जाने और भी कितने मकान तू
मुझसे ख़फ़ा हैं, तुझपे मेहरबान हैं,तो फिर
बोलेगा भला क्यों न अब, उनकी ज़बान तू
हँस के करे है बात, तो कुछ बात है ज़रूर
होवे, बग़ैर बात, भला मेहरबान तू
पवन दिक्षित
Sunday, April 13, 2008
Wednesday, April 9, 2008
Saturday, April 5, 2008
मुद्दतों बाद
मुद्दतों बाद इक नज़र देखा
चाहते तो न थे मगर देखा
खुद ब खुद पास आ गई मन्ज़िल
जब मेरा जज़्बाए-सफ़र देखा
खुद की कमियाँ नज़र नहीं आईं
आईना यूँ तो उम्र भर देखा
चाहते तो न थे मगर देखा
खुद ब खुद पास आ गई मन्ज़िल
जब मेरा जज़्बाए-सफ़र देखा
खुद की कमियाँ नज़र नहीं आईं
आईना यूँ तो उम्र भर देखा
Sunday, March 23, 2008
Saturday, March 1, 2008
क्या मिला
क्या किताबों में मिला, और क्या रिसालों में
सुख मिला भी तो मिला है महज़ ख़यालों में
मेरी परछाईं तक ने मुझसे साफ साफ कहा-
“मैं तेरा साथ तो दूंगी, मगर उजालों में “
तुझे ही शौक था, सबको जबाब देने का
उलझ के रह गई ना ज़िन्दगी सवालों में
शहर मे दर्द अकेले का, गाँव मे सबका
यही है फ़र्क़, शहर वालों, गाँव वालों में
पवन दीक्षित
सुख मिला भी तो मिला है महज़ ख़यालों में
मेरी परछाईं तक ने मुझसे साफ साफ कहा-
“मैं तेरा साथ तो दूंगी, मगर उजालों में “
तुझे ही शौक था, सबको जबाब देने का
उलझ के रह गई ना ज़िन्दगी सवालों में
शहर मे दर्द अकेले का, गाँव मे सबका
यही है फ़र्क़, शहर वालों, गाँव वालों में
पवन दीक्षित
Tuesday, February 26, 2008
रहने दे
मुझसा लगना रहने दे
कुछ तो अपना रहने दे
अपनी हसरत पूरी कर
मेरा सपना रहने दे
उकता गया ख़ुशी से मन
आज अनमना रहने दे
सच कहने की हिम्मत कर
यूँ दिल रखना रहने दे
सिर्फ़ भरम ही टूटेंगे
छोड़, परखना रहने दे
सच्चा होना काफ़ी है
गंगा जमना रहने दे
कहता है तू ख़ैर से है
ख़ुद को ठगना रहने दे
पवन दीक्षित
कुछ तो अपना रहने दे
अपनी हसरत पूरी कर
मेरा सपना रहने दे
उकता गया ख़ुशी से मन
आज अनमना रहने दे
सच कहने की हिम्मत कर
यूँ दिल रखना रहने दे
सिर्फ़ भरम ही टूटेंगे
छोड़, परखना रहने दे
सच्चा होना काफ़ी है
गंगा जमना रहने दे
कहता है तू ख़ैर से है
ख़ुद को ठगना रहने दे
पवन दीक्षित
Monday, February 25, 2008
अपने भी, बेगाने भी
अपने भी, बेगाने भी रिश्ते मगर निभाने भी
सिर्फ परेशाँ जाते हैं
मन्दिर भी, मैख़ाने भी
क्या ख़ूबी से बोले है
सच्चे लगैं बहाने भी
उनकी क्या मजबूरी थी
बात भी की, पहचाने भी
अबके ईदी नहीं मिली ”हामिद” को दो आने भी
पवन दीक्षित
सिर्फ परेशाँ जाते हैं
मन्दिर भी, मैख़ाने भी
क्या ख़ूबी से बोले है
सच्चे लगैं बहाने भी
उनकी क्या मजबूरी थी
बात भी की, पहचाने भी
अबके ईदी नहीं मिली ”हामिद” को दो आने भी
पवन दीक्षित
Thursday, February 21, 2008
kaash....
काश, मेरी जगह जो तू होता
तो मेरे ग़म से रू ब रू होता
मैं तेरी आरज़ू न करता तो
जाने कितनो की आरज़ू होता
पवन दीक्षित
तो मेरे ग़म से रू ब रू होता
मैं तेरी आरज़ू न करता तो
जाने कितनो की आरज़ू होता
पवन दीक्षित
Saturday, February 9, 2008
Monday, January 28, 2008
गर नहीं आते
तेरी बातों मे गर नहीं आते हम कभी लौट कर नहीं आते
है बुरा वक़्त तो मेरे अपने
दूर तक भी नज़र नहीं आते
मेरे कस्बे मे रोज़गार नहीं
वरना तेरे शहर नहीं आते
जिनका बचपन क़फ़स मे बीता हो
उन परिन्दों के पर नहीं आते
वफ़ा की शक्ल मे दग़ाबाज़ी
मुझको तेरे हुनर नहीं आते
मैं भी सुकरात हो गया होता
लोग ले कर ज़हर नहीं आते
हाल घर का न छुप सका शायद
अब भिखारी भी घर नहीं आते
पवन दीक्षित
है बुरा वक़्त तो मेरे अपने
दूर तक भी नज़र नहीं आते
मेरे कस्बे मे रोज़गार नहीं
वरना तेरे शहर नहीं आते
जिनका बचपन क़फ़स मे बीता हो
उन परिन्दों के पर नहीं आते
वफ़ा की शक्ल मे दग़ाबाज़ी
मुझको तेरे हुनर नहीं आते
मैं भी सुकरात हो गया होता
लोग ले कर ज़हर नहीं आते
हाल घर का न छुप सका शायद
अब भिखारी भी घर नहीं आते
पवन दीक्षित
Saturday, January 26, 2008
ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै
ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै, ये कैसे रिश्ते निभा रहा हूं
जता रहा हूं किसी से चाहत, किसी से नफ़रत छुपा रहा हूं
कभी कहा था,अकड़ के मुझसे, न जी सकेगा बिछड़ के मुझसे
वही गया था झगड़ के मुझसे, उसी को जी कर दिखा रहा हूं.........
मुझे हक़ीकत पता नहीं थी, पर इसमे मेरी ख़ता नहीं थी
तेरी ख़ता, क्या बता नहीं थी,तुझे लगा मैं सता रहा हूं.......
मैं ख़ुद को बिल्कुल बदल चुका हूं,तेरी हदों से निकल चुका हूं
के वक्त रहते सम्हल चुका हूं, यक़्क़ेन ख़ुद को दिला रहा हूं
ये कैसे रिश्तों में फंस गया मैं................
पवन दीक्षित
जता रहा हूं किसी से चाहत, किसी से नफ़रत छुपा रहा हूं
कभी कहा था,अकड़ के मुझसे, न जी सकेगा बिछड़ के मुझसे
वही गया था झगड़ के मुझसे, उसी को जी कर दिखा रहा हूं.........
मुझे हक़ीकत पता नहीं थी, पर इसमे मेरी ख़ता नहीं थी
तेरी ख़ता, क्या बता नहीं थी,तुझे लगा मैं सता रहा हूं.......
मैं ख़ुद को बिल्कुल बदल चुका हूं,तेरी हदों से निकल चुका हूं
के वक्त रहते सम्हल चुका हूं, यक़्क़ेन ख़ुद को दिला रहा हूं
ये कैसे रिश्तों में फंस गया मैं................
पवन दीक्षित
प्यार .........
परवाह नहीं करता जो, साहिल हो या मझधार
जिसको डरा ना पाये कोई तीर न तलवार
दुनियाँ की सबसे पाक़ चीज़ क्या है मेरे यार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार .........
हमारे दिल तो सभी के हैं सीपियों की तरह
किसी किसी मे ये मिलता है मोतियों की तरह
कहीं राधा, कहीं मीरा, कहीं घनश्याम है ये
कहीं विरह मे तड़पता है गोपियों की तरह
कहने को ढाई आखर, पर ज़िन्दगी का सार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार ..............
किसी की आँख मे चमके है आँसुओं की तरह
किसी के दिल मे ये दमके है जुगनुओं की तरह
इसकी दीवानगी मे ख़ार फूल लगते हैं
प्यार दिल मे जो महकता है ख़ुश्बुओं की तरह
गुलशन से फूल सब चुने, दीवाने चुने ख़ार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार.......
ये है रहीम का धागा, कबीर की चादर
राम तुलसी के लिये और सूर का गिरधर
पीर मीरा की है, रैदास की कठौती है
ये है सुकरात का प्याला ज़रा देखो पी कर
जो पी ले इसे उसका उतरे नहीं ख़ुमार प्यार प्यार वो है प्यार प्यार...........
बाप की डाँट मे है और माँ के आँचल में
किसी के बेर में है और किसी के चावल में
किसी की राखियों में है, किसी की मेंहदी में
किसी के आंसुओं के साथ बहे काजल में
एक रंग प्यार का है, पर रूप हैं हज़ार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार..........
पवन दीक्षित
जिसको डरा ना पाये कोई तीर न तलवार
दुनियाँ की सबसे पाक़ चीज़ क्या है मेरे यार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार .........
हमारे दिल तो सभी के हैं सीपियों की तरह
किसी किसी मे ये मिलता है मोतियों की तरह
कहीं राधा, कहीं मीरा, कहीं घनश्याम है ये
कहीं विरह मे तड़पता है गोपियों की तरह
कहने को ढाई आखर, पर ज़िन्दगी का सार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार ..............
किसी की आँख मे चमके है आँसुओं की तरह
किसी के दिल मे ये दमके है जुगनुओं की तरह
इसकी दीवानगी मे ख़ार फूल लगते हैं
प्यार दिल मे जो महकता है ख़ुश्बुओं की तरह
गुलशन से फूल सब चुने, दीवाने चुने ख़ार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार.......
ये है रहीम का धागा, कबीर की चादर
राम तुलसी के लिये और सूर का गिरधर
पीर मीरा की है, रैदास की कठौती है
ये है सुकरात का प्याला ज़रा देखो पी कर
जो पी ले इसे उसका उतरे नहीं ख़ुमार प्यार प्यार वो है प्यार प्यार...........
बाप की डाँट मे है और माँ के आँचल में
किसी के बेर में है और किसी के चावल में
किसी की राखियों में है, किसी की मेंहदी में
किसी के आंसुओं के साथ बहे काजल में
एक रंग प्यार का है, पर रूप हैं हज़ार
प्यार प्यार वो है प्यार प्यार..........
पवन दीक्षित
डर गया हूँ मैं
बीते दिनों को याद करके , डर गया हूँ मैं
अपनो के लिये तो कभी का मर गया हूँ मैं
वो दिन भी याद हैं, कोई झूठे को पूछ ले
खाने के वक़्त, दोस्तों के घर गया हूँ मैं
पवन दीक्षित
अपनो के लिये तो कभी का मर गया हूँ मैं
वो दिन भी याद हैं, कोई झूठे को पूछ ले
खाने के वक़्त, दोस्तों के घर गया हूँ मैं
पवन दीक्षित
Friday, January 25, 2008
तौबा
यार हुस्नो - शबाब से तौबा
यानी उस ला-जबाब से तौबा
अब तो पीने लगी शराब तुम्हे
अब तो कर लो शराब से तौबा
हमने इतने गुलाब भिजवाये
उसने कर ली गुलाब से तौबा
पारसाई न काम आई ना
और कर लो शराब से तौबा
थक के बोला यूं दावरे-महशर
यार तेरे हिसाब से तौबा
पवन दीक्षित
यानी उस ला-जबाब से तौबा
अब तो पीने लगी शराब तुम्हे
अब तो कर लो शराब से तौबा
हमने इतने गुलाब भिजवाये
उसने कर ली गुलाब से तौबा
पारसाई न काम आई ना
और कर लो शराब से तौबा
थक के बोला यूं दावरे-महशर
यार तेरे हिसाब से तौबा
पवन दीक्षित
Thursday, January 24, 2008
ख़तरनाक है......
ये मंज़र सियासी, ख़तनाक है
के सारी फ़िज़ा ही, ख़तरनाक है
मेरे ऐब को भी बताये हुनर
मेरे यार तू भी ख़तरनाक है
बुरे लोग दुनिया का ख़तरा नहीं
शरीफ़ों की चुप्पी ख़तरनाक है
पवन दीक्षित
के सारी फ़िज़ा ही, ख़तरनाक है
मेरे ऐब को भी बताये हुनर
मेरे यार तू भी ख़तरनाक है
बुरे लोग दुनिया का ख़तरा नहीं
शरीफ़ों की चुप्पी ख़तरनाक है
पवन दीक्षित
धन्यवादम....
यक़ीन दो जनों ने इस बशर पे रक्खा है
मैने ईमान, बस इन दो के दर पे रक्खा है
नेमते - शायरी मंगल “नसीम” ने बक्शी
अशोक “चक्रधर” ने हाथ सर पे रक्खा है
पवन दीक्षित
मैने ईमान, बस इन दो के दर पे रक्खा है
नेमते - शायरी मंगल “नसीम” ने बक्शी
अशोक “चक्रधर” ने हाथ सर पे रक्खा है
पवन दीक्षित
अदब-घर से आप तक ......
इस दौर में भी, जज़्बात लिये फिरता हूँ
पागल हूँ मैं, दिल साथ लिये फिरता हूँ
आँखों में मेरी, आँसू हैं मीरा के
और होठों पर सुकरात लिये फिरता हूँ
पवन दीक्षित
पागल हूँ मैं, दिल साथ लिये फिरता हूँ
आँखों में मेरी, आँसू हैं मीरा के
और होठों पर सुकरात लिये फिरता हूँ
पवन दीक्षित
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