या मेरा दुश्मन ही शातिर हो गया
या कोई अपना ही मुख़बिर हो ग्या
तू जुदा होना था आख़िर हो गया
पर तेरा किरदार ज़ाहिर हो गया
मैं जो इस महफ़िल मे हाज़िर हो गया
क्या बताऊं किसकी ख़ातिर हो गया
जो मकाँ मुझसे नहीं बन पाया “घर”
माँ का आना था कि मन्दिर हो गया
हर कोई कहता है मुझको देख कर-
“था भला इंसान, शाइर हो गया”
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3 comments:
अपना ही मुख़बिर हो गया होगा..जरा ध्यान दिजिये और गौर फरमईये आस पस. :)
accha hai pawan bhai
lage raho
deepak gupta
pawan jee, bahut sunder rachna lagee.
Bhagwaan aapko aur achaa likhne kee shakti de
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