Friday, May 23, 2008

शातिर हो गया

या मेरा दुश्मन ही शातिर हो गया
या कोई अपना ही मुख़बिर हो ग्या

तू जुदा होना था आख़िर हो गया
पर तेरा किरदार ज़ाहिर हो गया
मैं जो इस महफ़िल मे हाज़िर हो गया
क्या बताऊं किसकी ख़ातिर हो गया
जो मकाँ मुझसे नहीं बन पाया “घर”
माँ का आना था कि मन्दिर हो गया

हर कोई कहता है मुझको देख कर-
“था भला इंसान, शाइर हो गया”

3 comments:

Udan Tashtari said...

अपना ही मुख़बिर हो गया होगा..जरा ध्यान दिजिये और गौर फरमईये आस पस. :)

kavideepakgupta said...

accha hai pawan bhai
lage raho

deepak gupta

Ajay Narula said...

pawan jee, bahut sunder rachna lagee.

Bhagwaan aapko aur achaa likhne kee shakti de