Monday, May 5, 2008

हमारे

शरमा के हाथ सौंपा, जब हाथ में हमारे
जैसे नसीब पलटे, इक रात में हमारे

उनकी हवा है अब तो, उनके कहे में मौसम
बरसे न घर में बादल, बरसात में हमारे
ऐ हम पे हँसने वालों, तुम यूं न हँस सकोगे
दो दिन ज़रा जियो तो, हालात में हमारे
दिल का हरेक जज़्बा, आँसू की शक्ल में था
उनको लगा दिखावा, जज़्बात में हमारे
तक़दीर से ठनी थी, मंज़िल से दुश्मनी थी
ऐसे में कौन चलता, फिर साथ में हमारे
पवन दीक्षित

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