Friday, May 16, 2008

इक राज़

इक राज़ बताया हमे, आँखों के नीर ने
पीरों को पीर कर दिया, दुनिया की पीर ने

चिडियों को चुगते देखी रहा था, कि अचानक
हँस कर कटोरा फेंक दिया इक फ़क़ीर ने
मजबूरियों की आड़ मे, गिरता चला गया
रोका तो था मुझे बहुत, मेरे ज़मीर ने
उस बादशाह का कोई मोहरा नहीं पिटा
दी मात उसको उसके ही अपने वज़ीर ने
दामन के दाग़ देख के हम सोचते रहे
कैसे रखी सम्हाल के “चादर” “कबीर” ने

1 comment:

Udan Tashtari said...

दामन के दाग़ देख के हम सोचते रहे
कैसे रखी सम्हाल के “चादर” “कबीर” ने

--बहुत खूब!!