Sunday, May 18, 2008

रिटायर्ड – हर्ट

जब तक मेरी ज़रूरत थी
घर में कितनी इज़्ज़त थी
खपता रहा ज़िन्दगी भर
जितनी मुझमे ताक़त थी
बेटों के घर हफ़्ता भर
बस रहने की मोहलत थी
बहुओं का तो नाम था बस
सब बेटों की हरकत थी
सोच ले ऐ बच्चों की माँ
यही हमारी क़िस्मत थी

2 comments:

Udan Tashtari said...

कितने लोगों का सच.

kavideepakgupta said...

bahut khoob kaha pawan bhai ... badhai...

www.kavideepakgupta.com