Monday, May 19, 2008

समझते हैं

ख़ुद को वो पारसा समझते हैं
और हमको बुरा समझते हैं
मानते हैं किसी ख़ुदा को वो
हम किसी को ख़ुदा समझते हैं
सामना कैसे करूं मैं उनका
वो मुझे बा-वफ़ा समझते हैं
आपकी बात का यक़ीन करूं
क्या मुझे बावला समझते हैं

3 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत अच्छे शेर हैं भाई.
सामना कैसे करूं मैं उनका
वो मुझे बा-वफ़ा समझते हैं
क्या बात है !!!

राजीव रंजन प्रसाद said...

अच्छी रचना...

***राजीव रंजन प्रसाद

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.