Friday, May 9, 2008

सल्फ़ास

मुश्किल में साथ दे मुझे ये आस तो नहीं
ऐसा जिगर ऐ यार तेरे पास तो नहीं
माँ रोज़ जेब देखे है बेरोज़गार की
बेटे की जेब में कहीं सल्फ़ास तो नहीं
उड़ने से मुझे रोकता सैयाद क्या भला
मैं ही तो क़ैद था मेरा अहसास तो नहीं

1 comment:

Udan Tashtari said...

गजब पवन भाई.

आपका गोहाटी का कवि सम्मेलन यूट्यूब पर सुना जो आपने हमारे साथ ऑन लाईन कवि सम्मेअन में भी सुनाया था "पुराना माल"--बहुत जबर दस्त, बनाये रहिये.

इअतनी दूर आप सबको सुन कर सुखद अहसास होता है. अगली भारत यात्रा के दौरान आपसे मिलने का प्रयास करुँगा.

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका आना हमारा सौभाग्य है-आपका स्वागत है. नियमित लिखिये.

सादर

समीर लाल