Monday, May 12, 2008

तेरे ग़म से

तेरे ग़म से उबर चुका हूँ मैं
पहले वाला तो मर चुका हूँ मैं

मेरे दिल में वो शक्स उतरा है
जिसके दिल से उतर चुका हूँ मैं

जो गली कुल शहर की हसरत है
उससे बरसों ग़ुज़र चुका हूँ मैं
आसमाँ अब मुझे चिड़ाता है
जब ज़मीं पर उतर चुका हूँ मैं

5 comments:

अमिताभ मीत said...

क्या बात है. बहुत अच्छे शेर.
मेरे दिल में वो शक्स उतरा है
जिसके दिल से उतर चुका हूँ मैं

जो गली कुल शहर की हसरत है
उससे बरसों ग़ुज़र चुका हूँ मैं
बहुत उम्दा.

Udan Tashtari said...

गजब पवन भाई. बहुत खूब. छाये रहिये. :)

Unknown said...

गज़ब पवन जी. बधाई दोस्‍त

राजीव रंजन प्रसाद said...

eeआसमाँ अब मुझे चिड़ाता है
जब ज़मीं पर उतर चुका हूँ मैं

वाह...

***राजीव रंजन प्रसाद

ALOK PURANIK said...

मरे कहां हों
तम तो कल फिर आ जाओगे गजल सुनाने