Monday, May 5, 2008

मान लिया

क़ुसूरवार हमी हैं ज़रूर, मान लिया
हुज़ूर मान लिया जी, हुज़ूर मान लिया
मैं साफ़गोई का क़ायल था, साफ़ कहता था
मेरे मिज़ाज को उसने ग़ुरूर मान लिया

मेरे क़रीब से गुज़री है मुफ़लिसी जब से
मुझे क़रीब के लोगों ने दूर मान लिया

मेरा बचाव तो मुंसिफ भी चाहता था मगर
मेरे गवाह ने मेरा क़ुसूर मान लिया
मुझे तलाश थी दुनिया में, अपनी दुनिया की
मेरी तलाश को सबने फितूर मान लिया
पवन दीक्षित

1 comment:

हरिमोहन सिंह said...

मेरे क़रीब से गुज़री है मुफ़लिसी जब से
मुझे क़रीब के लोगों ने दूर मान लिया

क्‍या बात है