Wednesday, May 21, 2008

कब तक

उनसे अपनापन कब तक
आख़िर ये उलझन कब तक

इक दिन तो सच कहना था
रखता उनका मन कब तक

देखें इन दीवारों से
बचता है आँगन कब तक

अपना चेहरा पहचानो
बदलोगे दरपन कब तक

3 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

इक दिन तो सच कहना था
रखता उनका मन कब तक

रचना बेहतरीन है, खास कर यह शेर..

***राजीव रंजन प्रसाद

Mohinder56 said...

बहुत भायी हमें आपकी ये लघु रचना.....

देखें इन दीवारों से
बचता है आँगन कब तक

सचमुच दीवारें बढती जा रही हैं और आंगन लुप्त..

Udan Tashtari said...

अच्छी रचना.