Friday, May 23, 2008

शातिर हो गया

या मेरा दुश्मन ही शातिर हो गया
या कोई अपना ही मुख़बिर हो ग्या

तू जुदा होना था आख़िर हो गया
पर तेरा किरदार ज़ाहिर हो गया
मैं जो इस महफ़िल मे हाज़िर हो गया
क्या बताऊं किसकी ख़ातिर हो गया
जो मकाँ मुझसे नहीं बन पाया “घर”
माँ का आना था कि मन्दिर हो गया

हर कोई कहता है मुझको देख कर-
“था भला इंसान, शाइर हो गया”

Wednesday, May 21, 2008

कब तक

उनसे अपनापन कब तक
आख़िर ये उलझन कब तक

इक दिन तो सच कहना था
रखता उनका मन कब तक

देखें इन दीवारों से
बचता है आँगन कब तक

अपना चेहरा पहचानो
बदलोगे दरपन कब तक

Tuesday, May 20, 2008

दूध

लाख दुनिया के रंजो-ग़म लेंगे
तेरे अहसान अब, न हम लेंगे

अबके अम्मा की आँख बननी हैं
आज से दूध थोड़ा कम लेंगे

Monday, May 19, 2008

सोच तो दूर

सोच तो दूर, तमन्ना जो बता दूं अपनी
जाने कितनों कि निगाहों से उतर जाउंगा

समझते हैं

ख़ुद को वो पारसा समझते हैं
और हमको बुरा समझते हैं
मानते हैं किसी ख़ुदा को वो
हम किसी को ख़ुदा समझते हैं
सामना कैसे करूं मैं उनका
वो मुझे बा-वफ़ा समझते हैं
आपकी बात का यक़ीन करूं
क्या मुझे बावला समझते हैं

Sunday, May 18, 2008

रिटायर्ड – हर्ट

जब तक मेरी ज़रूरत थी
घर में कितनी इज़्ज़त थी
खपता रहा ज़िन्दगी भर
जितनी मुझमे ताक़त थी
बेटों के घर हफ़्ता भर
बस रहने की मोहलत थी
बहुओं का तो नाम था बस
सब बेटों की हरकत थी
सोच ले ऐ बच्चों की माँ
यही हमारी क़िस्मत थी

Friday, May 16, 2008

याद आये

ज़िद पर बाबूजी के चांटे याद आये
फिर अम्मा के आटे-बाटे याद आये
बाबूजी की बेंत देखते ही मुझको
यारों के संग सैर-सपाटे याद आये
इतने दिन मेरे घर, इतने भाई के
दिन कैसे माँ-बाप के बाँटे याद आये

इक राज़

इक राज़ बताया हमे, आँखों के नीर ने
पीरों को पीर कर दिया, दुनिया की पीर ने

चिडियों को चुगते देखी रहा था, कि अचानक
हँस कर कटोरा फेंक दिया इक फ़क़ीर ने
मजबूरियों की आड़ मे, गिरता चला गया
रोका तो था मुझे बहुत, मेरे ज़मीर ने
उस बादशाह का कोई मोहरा नहीं पिटा
दी मात उसको उसके ही अपने वज़ीर ने
दामन के दाग़ देख के हम सोचते रहे
कैसे रखी सम्हाल के “चादर” “कबीर” ने

Thursday, May 15, 2008

आर्ट गैलरी

लाखों बच्चे तरसें, दाने दाने को
भूखे बच्चों की तस्वीरें लाखों की

Wednesday, May 14, 2008

उसकी पाक़ीज़गी

उसकी पाक़ीज़गी की बात मैं करूं दिन भर
ख़्वाब में, बे-लिबास कर के नौचता हूँ उसे

Tuesday, May 13, 2008

मदद

कुछ मदद कर दो अभी, बच्चा बहुत बीमार है
फिर जहाँ, जैसे कहो, जब भी कहो, आ जाउंगी
किस ख़ूबी से अपना काम निकाला है
मैं तो समझा था वो भोला-भाला है
कितना हमको उन लोगों ने भटकाया
जो कहते थे रस्ता देखा- भाला है
लाख अंधेर मचा रक्खा हो झूठों ने
लेकिन सच का अपना एक उजाला है
आज उन्ही को बोझ लगे है “वो बूढ़ा”
”जिसने” उनको बोझा ढोकर पाला है
भूखे बच्चे ने दम तोड़ा है जब से
उस पगली के हाथ में एक निवाला है

Monday, May 12, 2008

तेरे ग़म से

तेरे ग़म से उबर चुका हूँ मैं
पहले वाला तो मर चुका हूँ मैं

मेरे दिल में वो शक्स उतरा है
जिसके दिल से उतर चुका हूँ मैं

जो गली कुल शहर की हसरत है
उससे बरसों ग़ुज़र चुका हूँ मैं
आसमाँ अब मुझे चिड़ाता है
जब ज़मीं पर उतर चुका हूँ मैं

Saturday, May 10, 2008

कतराने लगा

आजकल तो दोस्तों से भी वो कतराने लगा
उसपे आख़िर कामयाबी का असर आने लगा
हैं सभी सहमे, कि जिसके दम से चलता है ये घर
कुछ दिनों से, वक़्त से पहले ही घर आने लगा

अब तो दुश्मन भी सुलह की कोशिशें करने लगे
ये कहा मैने, तो मेरा यार घबराने लगा

बच कर बैठा

वो जो मुझसे बच कर बैठा
अफ़वाहों को सच कर बैठा
मैं तो सच की ज़िद में अपना
सपना किरच किरच कर बैठा
हैराँ था अपने करतब पर
वो जब दुनिया रच कर बैठा

रोता रहा

कोई उसका दुख न समझा, वो सदा रोता रहा
सब मज़ा लेते रहे, और मसख़रा रोता रहा
इक दुल्हन डोली में बैठी, टूट कर रोती रही
बन्द कमरे में इधर, इक सरफिरा रोता रहा
लाख वो हँसता रहा होगा वफ़ाओं पर मेरी
पर सुना, हो कर जुदा, वो बेवफ़ा रोता रहा
ये सुना था, जो तेरा है, मुस्कुराता है सदा
मैं तो सारी ज़िन्दगी, मेरे ख़ुदा रोता रहा
ख़ुश रहा वो, सब्र से काटी है जिसने ज़िन्दगी
फेर में निन्यानवे के जो पड़ा, रोता रहा

Friday, May 9, 2008

सल्फ़ास

मुश्किल में साथ दे मुझे ये आस तो नहीं
ऐसा जिगर ऐ यार तेरे पास तो नहीं
माँ रोज़ जेब देखे है बेरोज़गार की
बेटे की जेब में कहीं सल्फ़ास तो नहीं
उड़ने से मुझे रोकता सैयाद क्या भला
मैं ही तो क़ैद था मेरा अहसास तो नहीं

bhool sudhaar....

gazak ka matala galat type ho gaya thaa maafee chaahataa hoon....
यूँ तसव्वुर में भी वो आ जाये तो सजदा करूं
रू ब रू पा जाऊं तो उससे बहुत झगड़ा करूं

Thursday, May 8, 2008

ईमान खो गया

करके जुगाड़ मेरा ये रुतबा तो हो गया
लेकिन इसी जुगाड़ में ईमान खो गया

पहले हरेक बदी से मुझे रोकता था ये
अब तो मेरा ज़मीर ही, लगता है सो गया
आया था इस मकान में कुछ दिन के वास्ते
करते रहो मलाल, वो मेहमान तो गया

याँ जन्म की ख़ुशी है तो वाँ मौत की ग़मी
आना था जिसको आ गया, जाना था सो गया

देख ले

फ़ुर्सत नहीं कि तू मुझे इक बार देख ले
ये दिन भी आ गये हैं मेरे यार, देख ले

सच्चों के सामने तो झुकें बादशाह भी
जा कर किसी फ़क़ीर का दरबार देख ले
एक बाज़ी के सिवा क्या निकली
ज़िन्दगी भी तो इक जुआ निकली
ज़िन्दगी भर ही मेरा साथ दिया
मुफ़लिसी तू तो बावफ़ा निकली
मैं जिसे मय समझ के पीता था
वो तो हर दर्द की दवा निकली

Monday, May 5, 2008

सजदा करूं

यूँ तसव्वुर में वो आ जाये तो सजदा करूं
रू ब रू पा जाऊं तो उससे बहुत झगड़ा करूं
मेरे घर में दर्द ने डाला है डेरा दोस्तों
फ़िक्र में हूं कैसे इस मेहमान को चलता करूं
रौनकें घर की थी जो, अब बोझ घर पर हो गईं
तंग-हाली में सयानी बेटियों क क्या करूं
वो समझता है कि उसके बिन मैं जी सकता नहीं
मैं बयाँ कर के हक़ीक़त क्यों उसे छोटा करूं
पवन दीक्षित

हमारे

शरमा के हाथ सौंपा, जब हाथ में हमारे
जैसे नसीब पलटे, इक रात में हमारे

उनकी हवा है अब तो, उनके कहे में मौसम
बरसे न घर में बादल, बरसात में हमारे
ऐ हम पे हँसने वालों, तुम यूं न हँस सकोगे
दो दिन ज़रा जियो तो, हालात में हमारे
दिल का हरेक जज़्बा, आँसू की शक्ल में था
उनको लगा दिखावा, जज़्बात में हमारे
तक़दीर से ठनी थी, मंज़िल से दुश्मनी थी
ऐसे में कौन चलता, फिर साथ में हमारे
पवन दीक्षित

मान लिया

क़ुसूरवार हमी हैं ज़रूर, मान लिया
हुज़ूर मान लिया जी, हुज़ूर मान लिया
मैं साफ़गोई का क़ायल था, साफ़ कहता था
मेरे मिज़ाज को उसने ग़ुरूर मान लिया

मेरे क़रीब से गुज़री है मुफ़लिसी जब से
मुझे क़रीब के लोगों ने दूर मान लिया

मेरा बचाव तो मुंसिफ भी चाहता था मगर
मेरे गवाह ने मेरा क़ुसूर मान लिया
मुझे तलाश थी दुनिया में, अपनी दुनिया की
मेरी तलाश को सबने फितूर मान लिया
पवन दीक्षित