ज़िद पर बाबूजी के चांटे याद आये फिर अम्मा के आटे-बाटे याद आये बाबूजी की बेंत देखते ही मुझको यारों के संग सैर-सपाटे याद आये इतने दिन मेरे घर, इतने भाई के दिन कैसे माँ-बाप के बाँटे याद आये
एक दम सही कह रहे हैं, आप तो हमें कहां से कहां ले गये....पहले कुछ बचपन की खट्टी मिट्ठी यादों में नहला दिया और फिर पता ही नहीं चला कि कब कुछ ही शब्द कह कर इतनी ज़ोर से कान भी खींच दिये कि अब हम लोग क्या कर रहे हैं.... इतने दिन मेरे घर, इतने भाई के, दिन कैसे मां-बाप के बांटे याद आये।
हम क्या बतलाएँ कि आपने बड़ी आसानी से अपने बारे में कुछ न कहकर बस इतना ही लिख दिया कि कोई बतलाए कि हम बतलाएँ क्या ? ============================ भाई साहब हम बता दें कि इस छोटी सी कविता में तो आपने बहुत बड़ी बात कह दी है !
6 comments:
सच कहा है .....
इतने दिन मेरे घर, इतने भाई के
दिन कैसे माँ-बाप के बाँटे याद आये
अब तक कमस्कम इतना तो याद आता है ....
एक दम सही कह रहे हैं, आप तो हमें कहां से कहां ले गये....पहले कुछ बचपन की खट्टी मिट्ठी यादों में नहला दिया और फिर पता ही नहीं चला कि कब कुछ ही शब्द कह कर इतनी ज़ोर से कान भी खींच दिये कि अब हम लोग क्या कर रहे हैं....
इतने दिन मेरे घर, इतने भाई के,
दिन कैसे मां-बाप के बांटे याद आये।
बागबान फिल्म की याद आ गई।
क्या क्या न याद दिला चार लाईनों ने-एक किताब लिखी जा सकती है उस पर भाई!!! बहुत बड़ी कहानी है ये चार लाईना!!!
हम क्या बतलाएँ कि आपने
बड़ी आसानी से अपने बारे में
कुछ न कहकर बस इतना ही लिख दिया कि
कोई बतलाए कि हम बतलाएँ क्या ?
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भाई साहब हम बता दें कि
इस छोटी सी कविता में तो
आपने बहुत बड़ी बात कह दी है !
शुक्रिया
डा. चंद्रकुमार जैन
I like this one...............very meaningful.
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