Thursday, May 8, 2008

एक बाज़ी के सिवा क्या निकली
ज़िन्दगी भी तो इक जुआ निकली
ज़िन्दगी भर ही मेरा साथ दिया
मुफ़लिसी तू तो बावफ़ा निकली
मैं जिसे मय समझ के पीता था
वो तो हर दर्द की दवा निकली

1 comment:

हरिमोहन सिंह said...

पहली बार आया हू कुछ दम लगा है लाइनों में ।
अदब के साथ जानना चाहता हू कि क्‍या ये आप की स्‍वरचित है