Tuesday, August 19, 2008

जान देते थे वो इस बीमार पर
अब दुआओं के भी लाले पड़ गये

एक मैख़ाना शहर मे क्या खुला
मन्दिरो-मस्ज़िद मे तले पड़ गये

ढूंढने निकला था सच्चा आदमी

ये हुआ पैरों मे छाले पड़ गये

4 comments:

बालकिशन said...

बहुत खूब. शानदार.
एक-एक शेर गजब का है.
अच्छा लिखा आपने.
पढ़कर अच्छा लगा.

अमिताभ मीत said...

बहुत खूब. क्या बात है.

ALOK PURANIK said...

मैखाना घर के बगल में ही खुल्ला दीखै, घणे दिनों से ना दिख रे, ब्लाग पे।

Udan Tashtari said...

बहुत खूब!!