जान देते थे वो इस बीमार परअब दुआओं के भी लाले पड़ गयेएक मैख़ाना शहर मे क्या खुलामन्दिरो-मस्ज़िद मे तले पड़ गयेढूंढने निकला था सच्चा आदमी
ये हुआ पैरों मे छाले पड़ गये
बहुत खूब. शानदार.एक-एक शेर गजब का है.अच्छा लिखा आपने.पढ़कर अच्छा लगा.
बहुत खूब. क्या बात है.
मैखाना घर के बगल में ही खुल्ला दीखै, घणे दिनों से ना दिख रे, ब्लाग पे।
बहुत खूब!!
Post a Comment
4 comments:
बहुत खूब. शानदार.
एक-एक शेर गजब का है.
अच्छा लिखा आपने.
पढ़कर अच्छा लगा.
बहुत खूब. क्या बात है.
मैखाना घर के बगल में ही खुल्ला दीखै, घणे दिनों से ना दिख रे, ब्लाग पे।
बहुत खूब!!
Post a Comment