Thursday, August 14, 2008

ये रहबर सारे के सारे, जाने क्यूं झूठे लगते हैं .................................................................................. मुझको आज़ादी के नारे, जाने क्यूं झूठे लगते हैं

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब!!

तेज़ धार said...

आप एक पंक्ति कई घंटे सोचने को विवश करती है..