Wednesday, August 6, 2008

मज़हब का जज़्बा जब दिल मे जगने लगता है
मासूमो का ख़ून भी मीठा लगने लगता है

4 comments:

Udan Tashtari said...

मार्मिक शेर!!!

Prabhakar Pandey said...

मज़हब का जज़्बा जब दिल मे जगने लगता है
मासूमो का ख़ून भी मीठा लगने लगता है।

पहले तो इस सटीक और यथार्थ शेर के लिए मैं आपका हार्दिक नमन करता हूँ। आपके विचार चिंतनीय हैं। समाज की सत्य झाँकी- मात्र दो लाइनों में।
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एक विनती है अगर संभव हो तो वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें और इसकी जगह पर आप ब्लागर एप्रूभल डाल दें। इससे यह फायदा होगा कि पाठक आसानी से टिप्पणी कर सकेंगे और आप जिस टिप्पणी को नहीं चाहेंगे वह प्रकाशित भी नहीं होगी।
धन्यवाद।

अमिताभ मीत said...

क्या कहूँ ? शेर है कि हथौडा ? सीधा निशाने पे जा लगा. वाह !

श्रद्धा जैन said...

bhaut gahra sher