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adab-ghar
Wednesday, April 23, 2008
कौन अपना है इस ज़माने में
बेहतरी है, न आज़माने में
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साफ़ कह दे गिला कोई गर हैफ़ैसला, फ़ासले से बेहतर है
कौन अपना है इस ज़माने मेंबेहतरी है, न आज़माने में
उनके कहे से हो गया जो बदगुमान तूपूरी न कर सकेगा, प...
आदमी बे-ज़बान लगता हैदर्द की दास्तान लगता हैअबके चौ...
क्यों तसल्ली दे, क्यों बहाने देअब मेरी आस टूट जाने...
कोई ज़िद भी नहीं करते, कहा भी मान लेते हैंमेरी मजब...
कोई ज़िद भी नहीं करते, कहा भी मान लेते हैंमेरी मजब...
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adab-ghar
koi batlaaye ki ham batlaayen kyaa........
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