तेरी बातों मे गर नहीं आते हम कभी लौट कर नहीं आते
है बुरा वक़्त तो मेरे अपने
दूर तक भी नज़र नहीं आते
मेरे कस्बे मे रोज़गार नहीं
वरना तेरे शहर नहीं आते
जिनका बचपन क़फ़स मे बीता हो
उन परिन्दों के पर नहीं आते
वफ़ा की शक्ल मे दग़ाबाज़ी
मुझको तेरे हुनर नहीं आते
मैं भी सुकरात हो गया होता
लोग ले कर ज़हर नहीं आते
हाल घर का न छुप सका शायद
अब भिखारी भी घर नहीं आते
पवन दीक्षित
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1 comment:
पवन जी अपना पूरा परिचय दीजिये अपने profile में ।
आपकी लाइनें बहुत बहुत अच्छी लग रही है
और comment देने में word varification दिककत कर रहा है
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